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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 45 
देवयानी ने लाल कमल पुष्पों के आभूषण पहन लिये थे । लाल कमल पुष्पों से निकलने वाली प्रकाश किरणों से देवयानी का तन चमकने लगा था । उसके चेहरे की कांति लाल कमल के मुकुट से जगमगा उठी थी । इस श्रंगार के पश्चात देवयानी की आकांक्षा हुई कि वह स्वयं को आईने में देखे । किन्तु वहां आईना कहां था ? तब उसे कुछ याद आया और उसने कच से कहा । "कुछ पल आंखें खोलकर स्थिर खड़े रहना" । 
कच को कुछ समझ नहीं आया कि देवयानी उसे ऐसा क्यों कह रही है ? लेकिन जब देवयानी उसकी आंखों में झांककर उनमें अपनी छवि देखने लगी तब कच को पता चला । वह देवयानी की बुद्धिमानी की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सका । 
"कैसी लग रही हूं मैं" ? देवयानी का यह प्रश्न कच के लिए अप्रत्याशित था । कच ने आज तक कभी किसी की सुन्दरता पर कोई टिप्पणी नहीं की थी । वह सोचने लगा कि देवयानी को क्या कहूं ? लेकिन कुछ न कुछ तो कहना ही था इसलिए वह बोला 
"एक तो तुम्हारा सौन्दर्य और उस पर लाल कमल पुष्पों के आभूषण । यह तो सोने पे सुहागा वाली बात हो गई । मैं एक ब्रह्मचरी हूं, श्रंगार रस को क्या जानूं ? मैं इससे अधिक और क्या कह सकता हूं" ? कच ने जैसे तैसे कहा । 
"वैसे तो इतने विद्वान बनते हो, फिर श्रंगार रस से वैराग्य क्यों ? क्या जीवन भर अविवाहित रहने का किसी को वचन दे दिया है" ? देवयानी ने मुस्कुराते हुए और उपालंभ देते हुए बहुत सुंदर कटाक्ष किया था । कच ने ऐसे समय चुप रहना ही उचित समझा । देवयानी की इच्छा थी कि कच उसके रूप सौन्दर्य की इतनी प्रशंसा करे कि वह उससे तृप्त हो जाये । उसने उसे उकसाते हुए कहा 
"लगता है कि तुम्हें मेरा सौन्दर्य रुचिकर नहीं लगा" । 
"ये किसने कहा कि मुझे तुम्हारा सौन्दर्य रुचिकर नहीं लगा ? तुम तो इन्द्राणी शची और कामदेव की पत्नी रति से भी बहुत अधिक सुन्दर हो । मैंने तो उन दोनों को देवलोक में अनेक बार देखा है । वे दोनों सुन्दरियां तुम्हारे समक्ष कांतिहीन लगती हैं । शेष अप्सराओं की तो बात ही क्या है ? तुम्हारा रूप , सौन्दर्य, यौवन सब अतुल्य है , अद्भुत है और अद्वितीय है । मेरी बात का विश्वास करो यानी" । कच ने धैर्य पूर्वक कहा । 
"सच" ? और यह कहते हुए देवयानी ने उल्लास से कच का हाथ अपने हाथों में ले लिया । वह कच का हाथ अपने अधरों तक ले जा रही थी कि अचानक कच ने अपना हाथ उसके हाथ से छुड़ाकर कहा 
"रात्रि बहुत हो गई है यानी । आचार्य आपका इंतजार कर रहे होंगे । मैं भी अपनी कुटिया में जा रहा हूं । मेरे साथी मुझे वहां नहीं पाकर चिंतित हो रहे होंगे" । कहकर कच तेजी से चला गया । 

कच का यूं अचानक उस समय हाथ छुड़ाकर जाना जब देवयानी उन्हें चूमना चाहती थी, देवयानी को नहीं सुहाया पर देवयानी क्या करती ? निराश देवयानी भी अपनी कुटिया की ओर चल दी । रास्ते में उसे साधिका आती हुई दिखाई दी । वह इधर ही आ रही थी । देवयानी समझ गई कि पिता श्री ने उसे भेजा होगा । पास आने पर वह बोली 
"आप कहां चली गई थीं ? आपके लिए आचार्य कितना परेशान हैं, क्या आपको पता है" ? 

देवयानी साधिका के साथ परिहास करना चाहती थी इसलिए उसने इंकार कर दिया । तब साधिका बोली "आचार्य ने अभी तक भोजन भी ग्रहण नहीं किया है । वे आपकी राह देख रहे हैं देवी" । 
"तुमने उन्हें भोजन क्यों नहीं करवाया अब तक" ? 
"आपके बिना भोजन करते हैं क्या वे" ? 

प्रश्न के जवाब में प्रश्न करने से सामने वाला व्यक्ति निरुत्तर हो जाता है । साधिका के द्वारा प्रति प्रश्न करने से देवयानी निरुत्तर हो गई । दोनों तेज तेज कदमों से अपनी कुटिया पर आ गई । कुटिया में शुक्राचार्य देवयानी का इंतजार कर रहे थे । उन्होंने देवयानी को लाल कमल पुष्पों के आभूषणों से सुसज्जित देखा तो उनकी आंखें विस्मित हो गईं । उन आभूषणों से देवयानी कोई स्वर्ग की परी लग रही थी । शुक्राचार्य ने लाल कमल देखकर कहा 
"कहां से आए हैं ये लाल कमल पुष्प ? कितने अलौकिक हैं ये" 
देवयानी कहना चाह रही थी कि इन्हें मेरे लिए कच लेकर आया है । लेकिन इससे उनका अगला प्रश्न भयानक सिद्ध हो सकता था इसलिए देवयानी ने बड़ी कुशलता से उत्तर दिया 
"मंदिर में रखे हुए थे ये लाल कमल , मैंने इनके आभूषण बना लिए और उन्हें अपने शरीर पर धारण कर लिया" । 
"मंदिर में कौन रख गया होगा इन्हें ? ये तो सागर के बीचों बीच बने द्वीप के सरोवर में खिलते हैं । लोग कहते है कि उस सरोवर की रक्षा एक यक्ष करता है" । 
"हां पिता श्री , संभवत: वही रख गये हों इन्हें वहां पर ? और तो कौन ला सकता है इन लाल कमलों को उस यक्ष से चुराकर" ? 

देवयानी ने प्रथम बार अपने पिता से असत्य संभाषण किया था । ये प्रेम भी न जाने क्या क्या करवा देता है ? सर्वप्रथम यह अपने परिजनों से असत्य बोलना सिखाता है । तत्पश्चात अपने प्रेमी से चोरी चोरी मिलना सिखाता है । देवयानी को स्वयं पर आश्चर्य हो रहा था कि किस तरह वह अपने जनक , गुरू से मृषा भाषण कर रही थी । परन्तु मृषा भाषण करते समय अपराध बोध अवश्य हो रहा था उसके हृदय में । वह चाहती थी कि उसके पिता उसके प्रेम के बारे में जान नहीं पायें । वह तो स्वयं नहीं जानती थी कि वह कच से प्रेम करने लगी है । पर इतना अवश्य जानती थी कि अब उसकी यादों में कच का सदैव डेरा रहता है । उसके मन मस्तिष्क से कच बाहर जाता ही नहीं है । संभवत: प्रेम का प्रथम लक्षण यही है । 

देवयानी दौड़कर अपने कक्ष में चली गई और आईने के सम्मुख खड़ी होकर स्वयं को देखने लगी । कक्ष में दीपक का मध्यम प्रकाश था । उस हलके प्रकाश में लाल कमलों का प्रकाश भी सम्मिलित हो जाने से उसके चेहरे पर सूर्य की लालिमा सी आ गई थी । वह भोर की प्रथम किरण सी दैदीप्यमान हो रही थी । वह कच के बनाए हुए सुन्दर सुन्दर आभूषण आईने में देखने लगी । कितना सुन्दर मुकुट बनाया है कच ने ? उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता में वह विजेता रही हो और निर्णायकों ने उसके सिर पर यह मुकुट सजा दिया हो । गले में पड़ा हुआ लाल कमलों का यह हार दोनों कुचों के मध्य कितना सुशोभित हो रहा है ? देवयानी उसे छूकर देख रही थी । इन पुष्पों की सुगंध से सारी कुटिया महक रही थी । इस महक में उसके प्रेम की महक भी सम्मिलित थी जिसने इस सुगंध को दिव्य बना दिया था । 

उसने झटपट वे आभूषण उतारे और बाहर आ गई । शुक्राचार्य ने अभी तक भोजन नहीं किया था । देवयानी ने चुपचाप रहकर उन्हें भोजन परोसा । शुक्राचार्य ने भोजन करना प्रारंभ कर दिया । वे कहने लगे "आज तो गजब हो गया । कच पता नहीं कहां चला गया था । मुझे कच की चिंता रहती है देव । वह देव है और यहां दानवों के मध्य एकाकी रह रहा है । पता नहीं ये दानव क्या कर बैठे उसके साथ ? इसलिए मैं उसे कभी आश्रम से बाहर नहीं जाने देता हूं । लेकिन वह आज किसी को बिना बताये ही कहीं चला गया था । जब वह वापिस आ गया तब मुझे चैन मिला । क्या तुम्हारी भेंट हुई थी कच से" ? शुक्राचार्य ने देवयानी की ओर देखा ।

शुक्राचार्य की बात सुनकर देवयानी अवाक् रह गई । यह तो उसने सोचा ही नहीं था कि पिता श्री कच का इतना ध्यान रखते हैं । क्या पता उन्हें ज्ञात हो कि वह मंदिर में कच के साथ थी ? फिर भी उसने साहस कर कह दिया "नहीं, मेरी कच से आज कोई भेंट नहीं हुई" । देवयानी असत्य पर असत्य बोले जा रही थी । शुक्राचार्य उसके चेहरे के भाव देखते रह गये । एक युवा पुत्री से वह यह भी पूछ नहीं सकते थे कि उसके मन में क्या चल रहा है ? यदि जयंती होती तो वह देवयानी के मन के भाव जान सकती थी किन्तु वह अब कहां है , यह बात दैव के अतिरिक्त अन्य किसी को ज्ञात नहीं है । 

शुक्राचार्य ने भोजन समाप्त किया और शयन हेतु अपने कक्ष में चले गए । उधर देवयानी की क्षुधा तो कच के प्रेम में पहले ही तृप्त हो गई थी । उसे अब एकान्त सुहाने लगा था जहां वह अपने प्रेमी से मन ही मन कुछ वार्तालाप कर सके । वह भी अपने कक्ष में जाकर लेट गई और कच की यादों में खो गई । 

श्री हरि 
14.7.23 

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6 Comments

Gunjan Kamal

16-Jul-2023 12:47 AM

👌👏

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jul-2023 01:22 PM

🙏🙏

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Varsha_Upadhyay

15-Jul-2023 07:36 PM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jul-2023 01:21 PM

🙏🙏🙏

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Alka jain

15-Jul-2023 02:37 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jul-2023 01:21 PM

🙏🙏🙏

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